साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड
1966
वहाँ जब मैं पहली बार पहुँचा तो पहली बार नहीं पहुँचा था कुछ चीज़ें स्पष्ट थीं एक आकर्षक छवि लेकिन थोड़ी-सी कालिमा और उनींदापन लिए उठी ही उठी ही तब वह तमाम चीज़ें बिखरी थीं उसके साथ अपनी पूरी व्यवस्था की शक्ल में कोई गंध महसूस होती थी हालाँकि वहाँ कोई क़मीज़ नहीं लटक रही थी मैं उस घर में था कहता हुआ झरना सीधे समुद्र में डूबने को।
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