इक तरफ़ है प्यास दूजी ओर पानी का घड़ा (ग़ज़ल)

इक तरफ़ है प्यास दूजी ओर पानी का घड़ा,
प्यास जूती पाँव की सिरमौर पानी का घड़ा।

चाक से उतरा तो पागल जातियों में बंट गया,
है कहीं कुरमी कहीं राठौर पानी का घड़ा।

जो मुसावत की हैं बातें खोखली हैं झूठ हैं,
जानलेवा हो गया जालौर पानी का घड़ा।

एक माटी एक रंग था ख़ूब थी चितकारियाँ,
अब नज़र आता नहीं चितचोर पानी का घड़ा।

खो गई पनिहारियाँ सब इसलिए ख़ामोश है,
पनघटों पे अब न करता शोर पानी का घड़ा।

दर्द वो तक़सीम वाला कौन भूला है भला,
छोड़ कर दिल्ली गया लाहौर पानी का घड़ा।


रचनाकार : मनजीत भोला
लेखन तिथि : 30 अगस्त, 2022
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अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122 2122 2122 212
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