इंतज़ार (कविता)

इंतज़ार कोई मामूली
क्रिया नहीं है
हम अक्सर किसी न किसी चीज़
का इंतज़ार करते ही रहते हैं

बहुत बार तो वह दुःस्वप्न की
प्रतीक्षा ही होती है मात्र

इंतज़ार के लिए सबसे ज़रूरी धैर्य है
पर इसके बिना भी उसका
काम चल ही जाता है आख़िरकार

इस ज़माने में यह संभव हो गया
है कि हमारा अधैर्य ही
हमें इंतज़ार का अभ्यस्त बना दे

आपको लँगड़ी न लगे
इस फर्राटा दौड़ में यह तो
लगभग असंभव ही है

पर इस तरह इंतज़ार करना
कोई अच्छी बात नहीं

हम जब भी चुपचाप होते हैं वह
मकड़े की तरह बुनता रहता है
जाले हमारे चारों ओर

काल अपने अदृश्य हाथों से हमें
कहीं और पहुँचा देता है जहाँ
हमारा समय नहीं होता और
हमारा जागरण होता भी है तो
किसी और की सुबह में

हम अपने को ही देखते हैं
आँखें फाड़-फाड़कर और
पहचान नहीं पाते

अब चलते-चलते यह कह देना
अनुचित न होगा कि मृत्यु वरण करती
है सर्वप्रथम उसी का जो करता है
उसका इंतज़ार।


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