इतना पास अपने (कविता)

इतना पास अपने कि बस धुँध में हूँ
गिर गए सारे पराजित-पत्र
वृक्ष-साधु
और चीलें, हतप्रभ!
'हो कहाँ अब लौट आओ'—सुन रहा अपनी पुकारें

आवाज़ एक अंधा कुआँ है, जल नहीं, जिसमें बरस हैं
बस

जो गया, वह मृत्यु था
जो नया, वह बचा है—जल

सुन रहा अपनी पुकारें मैं निरंतर—

दोगे किन्हें
ये पुराने स्वप्न—
अपने बाद?
क्लांत यायावर!


रचनाकार : हेमन्त शेष
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