इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े (ग़ज़ल)

इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े
हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े

जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े

इक तुम कि तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है
इक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े

साक़ी सभी को है ग़म-ए-तिश्ना-लबी मगर
मय है उसी की नाम पे जिस के उबल पड़े

मुद्दत के बा'द उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह
जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े


रचनाकार : कैफ़ी आज़मी
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यह कैफ़ी आज़मी जी की पहली ग़ज़ल है जिसे उन्होंने सिर्फ़ 11 वर्ष की उम्र में लिखी।
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