जा रहा हूँ (कविता)

मैं गाँव से जा रहा हूँ

कुछ चीज़ें लेकर जा रहा हूँ
कुछ चीज़ें छोड़कर जा रहा हूँ

मैं गाँव से जा रहा हूँ

किसी सूतक का वस्त्र पहने
पाँच पोर की लग्गी काँख में दबाए

मैं गाँव से जा रहा हूँ

अपना युद्ध हार चुका हूँ
विजेता से पनाह माँगने जा रहा हूँ

मैं गाँव से जा रहा हूँ

खेत चुप हैं, फ़सल ख़ामोश,
धरती से आसमान तक तना है मौन... मौन के भीतर
हाँक लगा रहे हैं मेरे पुरखे... मेरे पितर...
उन्हें मिल गई है मेरी पराजय
मेरे गाँव से जाने की ख़बर

मुझे याद रखना, मेरे गाँव
मैं गाँव से जा रहा हूँ।


यह पृष्ठ 445 बार देखा गया है
×

अगली रचना

उनका रोना


पिछली रचना

निवेदन
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें