जागो मन के सजग पथिक ओ! (कविता)

मेरे मन के आसमान में पंख पसारे
उड़ते रहते अथक पखेरू प्यारे-प्यारे!

मन का मरु मैदान तान से गूँज उठा
थकी पड़ी सोई-सूनी नदियाँ जागीं
तृण-तरु फिर लह-लह पल्लव दल झूम रहा
गुन-गुन स्वर में गाता आया अलि अनुरागी

यह कौन मीत अगणित अनुनय से
निस दिन किसका नाम उचारे!
हौले-हौले दखिन पवन नित
डोले-डोले द्वारे-द्वारे!

बकुल-शिरिष-कचनार आज है आकुल
माधुरी-मंजरी मंद-मधुर मुस्काई
क्रिश्नझड़ा की फुनगी पर अब रही सुलग
सेमल वन की लहकी-लहकी प्यासी आगी
जागो मन के सजग पथिक ओ!
अलस-थकन के हारे-मारे
कबसे तुम्हें पुकार रहे हैं
गीत तुम्हारे इतने सारे!


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