जब भी दिल खोल के रोए होंगे
लोग आराम से सोए होंगे
बाज़ औक़ात ब-मजबूरी-ए-दिल
हम तो क्या आप भी रोए होंगे
सुब्ह तक दस्त-ए-सबा ने क्या क्या
फूल काँटों में पिरोए होंगे
वो सफ़ीने जिन्हें तूफ़ाँ न मिले
ना-ख़ुदाओं ने डुबोए होंगे
रात भर हँसते हुए तारों ने
उन के आरिज़ भी भिगोए होंगे
क्या अजब है वो मिले भी हों 'फ़राज़'
हम किसी ध्यान में खोए होंगे
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ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसेपिछली रचना
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