जब यादें उनकी आती,
आँखें-आँसू भर लाती।
थी जब साथ वो मेरे,
रहता दुःख अधिक घनेरे।
आँखों में सपनें उनके,
लेकर ख़ुशियाँ बिखेरे।
डूबकर ये काली रातें,
विरहा की गीत सुनाती।
जब यादें उनकी आती...
बस इक दी़दार से उनके,
मन-सुमन मेरा खिल जाता।
लगता उस क्षण तब ऐसे,
जैसे जन्नत मिल जाता।
जीवन के उस मधुबन में,
कोई कोयल-सी गाती।
जब यादें उनकी आती...
ख़ुशी तब मुझको मिलती,
जब मेरे पास तू होती।
आँखों में आँखें डाले,
बरसता प्रेम का मोती।
अब इक दी़दार तो उनका,
हर पल है मुझे सताती।
जब यादें उनकी आती...
डूबा था मैं निज ग़म में,
मिले थे उस क्षण हमसे।
इतनी ख़ुशियाँ क्यों देकर,
गए, घिरा जीवन-तम से।
धूमिल पड़ गई वो छवि,
जो थी को जी मचलाती।
जब यादें उनकी आती...
थक गया जैसे यूँ "पथिक",
पाँवों में पड़ा ज्यों कारा।
बुझा जीवन दीपक का,
कोई रहा न अब हमारा।
अब तो उनके विरहा में,
ग़मों की घटा छा जाती।
जब यादें उनकी आती,
आँखें-आँसू भर लाती...
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