वह जड़ों तक आलस में डूबा हुआ,
आँधी के दौरान पत्ती तक नहीं हिलाता हुआ,
फुनगी की मक्खी को नियति मानता हुआ,
वह जड़ता का प्रतीक बिल्कुल नहीं है।
उसकी ज़िंदगी ऐसी ज़िंदगी है,
जो ज़िंदगी के नज़दीक तक नहीं है।
वह कीच से ख़ुराक लेता हुआ,
चोटी पर कली खिलाता है।
एड़ी अँधेरे में गड़ाकर,
अनामिका लहराकर,
सूरज को बुलाता हुआ,
बादल को हिलाता हुआ,
हवा में खलबली मचाता,
चिड़ियों को इधर-उधर नचाता है।
उसकी जड़ता ज़माने की चुप्पी नहीं है।
उसकी ख़ामोशी सिर्फ़ ख़ामोशी है,
पराजय की कविता नहीं है।
ख़ामोशी को वह छाल की तरह
इधर से उधर झेलता है।
यह आदमी कुछ भी नहीं करता हुआ
कुछ कर रहा है।
यह उसे नहीं मालूम
कि वह किसके लिए उग रहा है
किसके लिए रह रहा है
किसके लिए बीत रहा है
वह लगातार हारकर
उम्र को जीत रहा है।
वह लगातार होता हुआ
रीत रहा है।
वह सपने की तरह आगे नहीं बढ़ता
वह व्यतीत की तरह
जहाँ का तहाँ अड़ रहा है।
वह अपनी जड़ता में नहाता हुआ
पुलकायमान हो रहा है।
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