जगह की कमी (कविता)

इतनी बड़ी पृथ्वी पर
मुश्किल है
एक बच्चे का आज़ादी से खेलना
इतनी पाबंदियाँ हैं कि
लोग हौसला नहीं हिदायतें दिया करते हैं
रुक जाते हैं उनके पाँव
जो आसमान नापने के लिए बने
चुप हो गई उनकी आवाज़
जिसमें नई भाषा का जन्म होना था
रंगों की थकान
उन्हें बुला रही है
ख़ाली दीवारें इंतज़ार में हैं कि
उनकी रंगत बदल जाए
खिलौने बुझे हैं
तस्वीरें उदास
बच्चे कुछ भी करें तो
वह क़ुबूल नहीं होगा
ज़िद पर गिरेगा हज़ार मन पानी
एक दिन ख़त्म हो जाएगी
कुछ करने की यह बेचैनी
कहने वाले
उनकी शांति की मिशालें देंगे
जबकि वे नहीं जानते
इस शांति में
कितनी कलाओं के शव दफ़्न हो गए।


रचनाकार : शंकरानंद
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