जहाँ-दार पे वार चलने लगा
ग़ुलामों का दरबार चलने लगा
अज़ल से किसी शय में गर्दिश न थी
चला मैं तो संसार चलने लगा
ख़ुदा रक्खे अमरीका-ओ-रूस को
मियाँ अपना अख़बार चलने लगा
तबस्सुम तकल्लुम जवाँ हो गए
मुबारक हो घर-बार चलने लगा
अभी धूप 'ख़ालिद' पे आई न थी
कि दीवार दीवार चलने लगा
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें