साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3549
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
जैसा चलता है चलने दे, सूरज ढलता है ढलने दे। तम को है दूर भगाने को, दीपक जलता है जलने दे। शम्मा महफ़िल में जलती है, औ मोम गले तो गलने दे। है काम टलेगा अब कल पर, जब टलता है तो टलने दे। गर पोल खुली है जब उसकी, यदि खुलती है तो खुलने दे। जड़ से है मानो पेड़ हिला, अब हिलता है तो हिलने दे।
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