जैसा चलता है चलने दे (गीतिका)

जैसा चलता है चलने दे,
सूरज ढलता है ढलने दे।

तम को है दूर भगाने को,
दीपक जलता है जलने दे।

शम्मा महफ़िल में जलती है,
औ मोम गले तो गलने दे।

है काम टलेगा अब कल पर,
जब टलता है तो टलने दे।

गर पोल खुली है जब उसकी,
यदि खुलती है तो खुलने दे।

जड़ से है मानो पेड़ हिला,
अब हिलता है तो हिलने दे।


  • विषय :
लेखन तिथि : 17 अगस्त, 2022
यह पृष्ठ 153 बार देखा गया है
आधार छंद : चौपाई
×

अगली रचना

मैंने देखा एक ज़माना


पीछे रचना नहीं है


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें