जल (कविता)

स्मृतियों का जल भरा है
मेरी आँखों की सुराहियों में

यह जल टपकता रहता है
लगातार मेरी आँखों की देह से
भले ही यह टपके नहीं
तल से इसका रिसना कम नहीं होगा

यह जल देखते-देखते एक दिन जल जाएगा
रिस जाएगा तल से अकस्मात्
मौन चीत्कार के साथ

लेकिन बची रहेगी
छूटती पपड़ियों के साथ टूटती-सी
सुराहियों की इसकी देह

सूख चुकी काई के बीच
रह जाएगा ताकता कोई निर्निमेष
मृत जल का उजला‌ अवशेष


रचनाकार : विजय राही
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