जलियाँवाले बाग़ में वसंत (कविता)

यहाँ कोकिला नहीं, काक हैं शोर मचाते।
काले-काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते॥
कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से।
वे पौधे, वे पुष्प, शुष्क हैं अथवा झुलसे॥

परिमल-हीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है।
हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना।
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना॥

वायु चले पर मंद चाल से उसे चलाना।
दुख की आहें संग उड़ाकर मत ले जाना॥
कोकिल गावे, किंतु राग रोने का गावे।
भ्रमर करे गुंजार, कष्ट की कथा सुनावे॥

लाना सँग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले।
हो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ-कुछ गीले॥
किंतु न तुम उपहार-भाव आकर दरसाना।
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना॥

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर।
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर॥
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं।
अपने प्रिय-परिवार देश से भिन्न हुए हैं॥

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना।
करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना॥
तड़प-तड़पकर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर।
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर॥
यह सब करना, किंतु
बहुत धीरे-से आना।
यह है शोक-स्थान
यहाँ मत शोर मचाना॥


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