साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
रायपुर, छत्तीसगढ़
1964
आकाश के थाल में तारों के झिलमिलाते दीप रखकर उतारों मेरी आरती दूध मोंगरा का सफ़ेद फूल धरो मेरे सिर पर गुलाल से रँगे सोनामासुरी से लगाओ मेरे साथ पर टीका सरई के दोने में भरे कामधेनु के दूध से जुठारो मेरा मुँह कि नहीं आई कोई सनसनाती गोली मेरे सीने में कि नहीं भोंका गया मुझे छुरा कि नहीं जलाया गया मेरा घर कि वर्ष भर जीवित रहा मैं।
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