जेबक़तरा (कविता)

मालवानी की चाल में
एक महीने के प्रशिक्षण के बाद निकला था
जेबक़तरा
आज पहला दिन था उसका
बोहनी का दिन
मुंबई की लोकल में
हर स्टेशन पर उतरना था
करना था फ़ोन
आदेश था उस्ताद का

दस दिनों तक सीखा था उसने
नाख़ून के भीतर ब्लेड घुसाना
दस दिनों तक सीखा
पानी से भरे बर्तन मे कमल के पत्ते पर
इस तरह मारना ब्लेड कि पानी की बूँद
ब्लेड पर न पड़े और आख़िरी दस दिनों तक
अँग्रेज़ी के वी की आकृति में जेब पर ब्लेड चलाना
ताकि आसानी से और हाथ में गिरे पर्स

मलाड में
फ़ोन कर उस्ताद को किया प्रणाम
कामयाबी की दुआ ली और सवार हो गया
पहले देखो, समझो फिर आराम से लगाओ हाथ
उस्ताद की नसीहत याद करने में ही
आ गया गोरेगाँव

दूसरी ट्रेन के आने के पहले
जब लगाया फ़ोन अपने उस्ताद को
रह गया भौंचक

हाय राम, ये क्या हुआ
पैसा ही नहीं बचा था मोबाइल में एक भी
मलाड में उस्ताद से बात करने के बाद शेष थे
चौवन रुपए

किसने काट लिए
आते-आते गोरेगाँव...


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