हम और हमारे जीवन का
हर पल किसी गणित से कम नहीं है,
जीवन में जोड़ घटाव भी
यहाँ कम कहाँ है,
गुणा भाग का खेल तो
चलता ही रहता है।
कभी जुड़ना तो कभी घटना
शेष भी रहता सदा है,
कॉमा, बिंदी, बराबर, उत्तर भी यहाँ है।
कभी सही तो कभी ग़लत भी है
कभी उलझन कभी सुलझन
कभी आसान कभी मुश्किलें
जीवन में गणित से कहाँ कम है?
गणित से पीछा छूट सकता है
या पीछा तो छुड़ा लोगे,
मगर जीवन के गणित से
रोज़ के जोड़, घटाव, गुणा, भाग
शेष, उत्तर, बराबर से आख़िर
पीछा भला कैसे छुड़ा लोगे?
बिना गणित के जीवन का भला
कैसे गुज़ारा कर लोगे?

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