जीवन के कुछ अवशेष (कविता)

आजकल मन उदास रहता है,
तू नहीं होती, एहसास रहता है।
मिटा दी मैंने अपनी हर ख़्वाहिश,
बस तु ही एक ख़ास रहता है।
डर जाता देख दुनिया का मंज़र,
उर आँगन में एक साया होता है।
जिसकी चाहत कभी हुई नहीं,
उसी हेतु आज हृदय रोता है।
खाली लगता बिन तेरे जीवन,
दूर तट पर मोती चमकता है।
लगी रहती हैं आँखें सदा ही,
अंतः से इक दर्द छलकता है।
पुराने खंडहर में निरवता छाई,
कबूतरों ने बसेरा छोड़ दिया।
बच्चे जनती जहाँ काली कुतिया,
उसने भी वहाँ जाना छोड़ दिया।
एक-एक करके चले सभी,
बिखेर अपनी सारी यादें।
रह गए, उनके चिन्ह धरा पर,
और कुछ खट्टी-मिट्ठी बातें।
रही यही सब मर्म वेदना,
साल रही उर को मेरे।
लगी आस उन्हें पाने को,
कुछ मेरे और कुछ तेरे।


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 22 फ़रवरी 2022
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