जिनके पिता नहीं होते (कविता)

जिनके पिता नहीं होते
बग़ैर किसी उँगली
या हाथ के सहारे के चलते हैं ऐसे बच्चे
और पाँव में गड़ा काँटा निकालते हैं स्वयं

उनके दिलों में ख़ाली रहती है एक जगह उम्र भर

मुसीबत के वक़्त
वे आकाश की तरफ़ देखते हैं
कि आकाश सबका पिता है
और गहरी साँस लेते हैं

उन्हें पता भी नहीं चलता
और उनका घरौंदा घर में बदल जाता है देखते-देखते
देखते-देखते पृथ्वी में बदल जाती है उनकी गेंद

ऐसे बच्चे खेलते नहीं कोई खेल
पढ़ते नहीं कोई किताब
स्कूल नहीं जाते
वे काम करते हैं कोई-सा भी
होटलों मे कप-प्लेट धोने से लेकर
अख़बार बेचने तक
और आठ की उम्र में अट्ठारह के हो जोते हैं
वे अकेले होते हैं
अपने निर्णय और अनिर्णय में
कोई नहीं होता उनकी हार-जीत के साथ
अपनी ग़लतियों पर वे झिड़कते हैं ख़ुद को
हर नेक काम के बाद वे थपथपाते हैं ख़ुद अपनी पीठ

जिनके पिता नहीं होते
ख़ुद अपने पिता हाते हैं ऐसे बच्चे।


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