जो बचाना चाहते हो बच भी जाएगा मगर (ग़ज़ल)

जो बचाना चाहते हो बच भी जाएगा मगर,
एक दिन मौसम सुहाना दिल जलाएगा मगर।

मान लो के ज़ख़्म दिल के भर भी जाएँगे सभी,
एक दिन फिर दर्द ना होना रुलाएगा मगर।

जानता हूँ दर्द-रस है तू मगर कह-सुन ले कुछ,
कहना-सुनना बात भी शायद बढ़ाएगा मगर।

ये अगर गफ़लत नहीं है तो भला क्या है बता,
प्यार सबको होगा, कोई-कोई पाएगा मगर।

एक दिन फिर रौशनी होगी तेरे ही नाम से,
एक दिन आँसू तू घर-भर से छुपाएगा मगर।

लौट कर आती नहीं उम्र-ए-गुज़श्ता फिर कभी,
याद आएगी, मौसम-ए-बाराँ न आएगा मगर।


रचनाकार : रोहित सैनी
  • विषय :
लेखन तिथि : अक्टूबर, 2023
यह पृष्ठ 189 बार देखा गया है
अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती: 2122 2122 2122 212
×

अगली रचना

कोई ख़ुशबू, कोई साया, याद आया रात भर


पिछली रचना

इक ख़ुमारी है बे-क़रारी है


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें