जो बचाना चाहते हो बच भी जाएगा मगर,
एक दिन मौसम सुहाना दिल जलाएगा मगर।
मान लो के ज़ख़्म दिल के भर भी जाएँगे सभी,
एक दिन फिर दर्द ना होना रुलाएगा मगर।
जानता हूँ दर्द-रस है तू मगर कह-सुन ले कुछ,
कहना-सुनना बात भी शायद बढ़ाएगा मगर।
ये अगर गफ़लत नहीं है तो भला क्या है बता,
प्यार सबको होगा, कोई-कोई पाएगा मगर।
एक दिन फिर रौशनी होगी तेरे ही नाम से,
एक दिन आँसू तू घर-भर से छुपाएगा मगर।
लौट कर आती नहीं उम्र-ए-गुज़श्ता फिर कभी,
याद आएगी, मौसम-ए-बाराँ न आएगा मगर।
लेखन तिथि : अक्टूबर, 2023
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अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती: 2122 2122 2122 212