हसीना के मुख पे पसीना यों झलकता है,
तारे निकले हों जैसे पूनम के मून में।
सेंट की सुगंध से जो शीत की लहर चली,
मन मसूरी में गया, तन देहरादून में।
मछेरे-सी हँस कर, मछली-सी फँस कर,
यौवन को कस कर चुस्त पतलून में,
ऊन-सा बदन लिए जून में चली यों गोरी,
जनवरी चली जा रही हो जैसे जून में।
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