साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
आगरा, उत्तर प्रदेश
1860 - 1928
काली घटा का घमंड घटा, नभ-मंडल तारक-वृंद खिले। उजियाली निशा, छबि शाली दिशा, अति सोहै धरातल फूले फले॥ निखरे सुथरे बन पंथ खुले, तरु पल्लव चंद्र-कला से धुले। बन शारदी-चंद्रिका-चादर ओढ़ैं, लसैं समलंकृत कैसे भले॥
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