कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
ठोकर मार! पटक मत माथा!—
तेरी राह रोकते पाहन!
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
ले-दे कर जीना, क्या जीना?
कब तक ग़म के आँसू पीना?
मानवता ने सींचा तुझको
बहा युगों तक ख़ून-पसीना!
कुछ न करेगा? किया करेगा—
रे मनुष्य—बस कातर क्रंदन?
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
युद्धम्देहि कहे जब पामर,
दे न दुहाई पीठ फेर कर!
या तो जीत प्रीति के बल पर
या तेरा पथ चूमे तस्कर!
प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है,
पर कायरता अधिक अपावन!
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
तेरी रक्षा का न मोल है,
पर तेरा मानव अमोल है!
यह मिटता है, वह बनता है;
यही सत्य की सही तोल है!
अर्पण कर सर्वस्व मनुज को,
कर न दुष्ट को आत्म-समर्पण!
कुछ भी बन बस कायर मत बन!
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