कब वो सुनता है कहानी मेरी (ग़ज़ल)

कब वो सुनता है कहानी मेरी,
और फिर वो भी ज़बानी मेरी।

ख़लिश-ए-ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ न पूछ,
देख ख़ूँनाबा-फ़िशानी मेरी।

क्या बयाँ कर के मिरा रोएँगे यार,
मगर आशुफ़्ता-बयानी मेरी।

हूँ ज़-ख़ुद रफ़्ता-ए-बैदा-ए-ख़याल,
भूल जाना है निशानी मेरी।

मुतक़ाबिल है मुक़ाबिल मेरा,
रुक गया देख रवानी मेरी।

क़द्र-ए-संग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ,
सख़्त अर्ज़ां है गिरानी मेरी।

गर्द-बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ,
सरसर-ए-शौक़ है बानी मेरी।

दहन उस का जो न मालूम हुआ,
खुल गई हेच मदानी मेरी।

कर दिया ज़ोफ़ ने आजिज़ 'ग़ालिब',
नंग-ए-पीरी है जवानी मेरी।


रचनाकार : मिर्ज़ा ग़ालिब
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