कई रास्ते फूटते हैं;
जीवन के उत्स से।
कहीं कोयल मधुर राग छेड़ती है,
तो कहीं घुप्प अंधेरा।
कहीं झरनों का सुंदर संगीत है;
तो कहीं झिंगुरों की कर्ण भेदी स्वर।
इन सबके मध्य से–
गुज़रना पड़ता है एक आदमी को।
एक नदी!
जो निरंतर प्रवाहित हो;
बहती है अपनी धुन में।
और सागर में मिलकर
खो देती अपना अस्तित्व।
एक आदमी भी!
जीवन के रंगमंच पर
आजीवन अभिनय करता हुआ,
खो जाता है अतीत के पन्नों में।
जहाॅं उसकी स्मृति
शेष रह जाती है।
या रह जाती तो
बस! एक धुँधली छाया;
जो जीवन के अंतिम क्षणों तक
कभी पीछा नहीं छोड़ती।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें