कहीं एक जगह (कविता)

कहीं एक जगह है, जिसे कोई नहीं जानता।
वहीं एक तालाब है, जिसमें एक अपरिचित फूल खिलता है,
तालाब के किनारे साँप के जोड़े लड़खड़ाते हैं
और घनी बँसवारियों के कुँज में अँधेरा बैठा रहता है
छुपकर।

उसका एक नक़्शा है, जिसमें एक शहर है
उसका एक गीत है, जिसमें एक जंगल है
उसकी एक अपनी ठंड है, जिसे कोई नहीं पहचानता।
कहीं एक जगह है—जिसे
कोई नहीं जानता।

वहीं एक आदमी गीतों में ज़िंदा हो उठता है।
अपरिचित फूल का नाम गढ़ता है
साँपों की भाषा बनाता है
और अँधेरे से फैलने को
कहता है।

किनारे पर सूरज ढलता है
उत्तर से दक्षिण चिड़ियों के झुंड उड़े चले जाते हैं।
फिर धुआँ...साँपों की सीत्कार का लोलुप आकर्षण
डर नहीं लगता। इसी धरती पर कहीं वह
जगह है—जिसे कोई नहीं जानता।

कहीं एक जगह, एक अपरिचित फूल, एक आदमी,
और आदमी को चूमती हुई एक नन्ही-सी ख़ूबसूरत ज़िंदगी
कहती है—'चलो, बहुत
देर हो गई है।'


रचनाकार : दूधनाथ सिंह
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