कल हमारा है (कविता)

ग़म की बदली में चमकता एक सितारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
धमकी ग़ैरों का नहीं अपना सहारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है।

गर्दिशों से हारकर ओ बैठने वाले
तुझको ख़बर क्या अपने पैरों में भी हैं छाले
पर नहीं रुकते कि मंज़िल ने पुकारा है
आज अपना हो...

ये क़दम ऐसे जो सागर पाट देते हैं
ये वो धाराएँ हैं जो पर्वत काट देते हैं
स्वर्ग उन हाथों ने धरती पर उतारा है
आज अपना हो...

सच है डूबा-सा है दिल जब तक अँधेरा है
इस रात के उस पार लेकिन फिर सवेरा है
हर समंदर का कहीं पर तो किनारा है
आज अपना हो...


रचनाकार : शैलेन्द्र
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