चेहरे पर भय करुणा
दुःख और विषाद के साथ
थोड़ी तड़प और ज़्यादा बेचैनी
मिलाती हुई वह
लालबत्ती पर खड़ी
हर गाड़ी पर देती है दस्तक
ज़िंदगी के बंद किवाड़ों से
नहीं आती कोई आवाज़
आँखें मिलती नहीं
होंठ हिलते नहीं
गोया कटे गर्दन से छूटते
लहू के फ़व्वारे की तरह तेज़
भागती हैं गाड़ियाँ
कुछ भी रुक नहीं रहा
समुद्र पी रहा है अपना जल
आसमान सोख रहा है
अपना निचाटपन
धर्मग्रंथों का कोई शब्द
नहीं फूटता बम की तरह
हालाँकि इस क्षण भी
मिट्टी ने सोखा होगा
कुछ बूँद जल
सुदूर किसी चिड़िया की
आँख खुली होगी
एक सूखे पत्ते ने वृक्ष को अंतिम
बार छुआ होगा
एक बच्चे ने कसकर
भींचा होगा माँ की उँगलियों को
मरते हुए शख़्स ने चखा होगा
ऑक्सीजन का स्वाद आख़िरी बार
यह सब कुछ दुहराया
जाएगा बार-बार
जीवन और अभिनय के बीच
एक चिड़िया छोड़ जाएगी एक तिनका
वहाँ लालबत्ती पर
कोई ढूँढ़ेगा जीवन
कोई ढूँढ़ेगा करुणा
कोई प्यार कोई घृणा
कला ऐसे ही मरती है
जीवन ऐसे ही बचता है
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें