कलमुँही रात है (नवगीत)

हिरणों का झुंड है
शेर की घात है!

निरंकुशता से
हो रही हत्याएँ!
जीवन को क्यों
डँसती हैं व्यथाएँ!!

दिन हुए लिजलिजे
कलमुँही रात है!

वन के दरख़्त ने
बहुत कुछ देखा है!
वधक का शासन
औ नहीं लेखा है!!

हुआ मारपेच,
आई गई बात है!


लेखन तिथि : 19 मार्च, 2019
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