काश (कविता)

काश ऐसा होता, काश वैसा होता,
काश ये न होता, काश वो न होता।
काश, "काश" से पूरी होती आस,
बन गया "काश" सिर्फ़ सपनो का आकाश।

काश में जो सिमट कर रहता,
मिलता नही उसे आज से अवकाश।
कल की राह वह ढूँढ़ न पाता,
काश ही उसके सपनो का आकाश।

काश की क़ैद से निकल अगर,
कल पर करता गहरी शोध।
और भी बहुत हो जाता हासिल,
प्रगति में होता न यूँ अवरोध।

बुरी होती यह काश की बंदिशें,
दिमाग हो जाता काश से कुंद।
काश से न मिलता आकाश,
कल का मार्ग हो जाता रुद्ध।

मिलता उन्ही को अपना आकाश,
जो न रहते काश के साथ।
छोड़ कर लगाम इस काश की,
आगे बढ़ते जोश के साथ।

काश का चोगा पहनते जो,
छोटी लड़ाई भी जाते हार।
लक्ष्य की ओर जो बढ़ते जाते,
जीत जाते हर बड़ा समर।

काश तो होता सपनो का वास,
पूरे करने को करो साधना।
काश में ही मिट जाएँगे सब,
अगर न हो लक्ष्य की आराधना।

छोड़ो अभी से काश का दामन,
कर्म पथ का करो आचमन।
बढ़ो सदा गंतव्य की ओर,
शिखर से होगा आर्लिंगन्।

काश तो है बहाना आलस्य का,
कुछ न करने का आलम है काश।
काश की वेदना काश कोई जाने,
काश में है हताशा और संत्रास।

काश से कभी न पूरे होते सपने,
रह जाते सपने यूँ ही आधे अधूरे।
काश का दामन न छोड़ें तो,
रह जाएँगे पीछे क़दम बहुतेरे।

काश से न होता जीवन यापन,
काश ही में रह जाओगे आजीवन।
काश से न होता जीवन का आकलन,
काश नहीं कभी कर्म का साधन।


लेखन तिथि : 15 अगस्त, 2021
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लोग सपने तो बहुत देखते हैं, पर उन्हे पूरा करने के लिए कर्म पथ पर पूरे उद्यम के साथ बिरले ही आगे बढ़ते हैं। भाग्य के सहारे बैठे रहने से भाग्योदय नहीं होता। इसी भाव को शब्दों में पिरोने की एक कोशिश है यह 'काश के स्वप्नजाल में फँसे लोगों को आगाह करती हुई यह रचना'।
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