कटी-कटी है (नवगीत)

एक है माँ
कितने बेटों के
बीच बँटी है।

पिता गए तो
सारा घर ही
टूट गया है।
बुरा समय
ख़ुशियों को आकर
कूट गया है।।

थी मेड़ ही
पगडंडी-
दिखती कटी-कटी है।

भाई-भौजाई
किसी बात पे
अकड़े हैं।
साँप स्वार्थ का
कसकर-
रिश्तों को जकड़े है।।

इसीलिए परिवार
में होती
खटापटी है।

पास-पड़ोस भी
फूट पड़ी तो
जमकर हँसा।
सीने में
कुटुंब के
तीर विघटन का धँसा।।

खोई नम्रता
और आदमी
हुआ हठी है।


लेखन तिथि : 2020
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