जिनके सीने में सुइयों-सा गड़ता है दर्द विवशता का,
जिनके घर में घुस बैठा है अंधा राक्षस परवशता का,
जो दुनिया भर का बोझ उठाए रंजोग़म से लड़ते हैं,
जो अपनी राहें आप बना पर्वत की चोटी चढ़ते हैं,
कवि उनका है,
कविता उनकी!
जिनकी दो ख़ाली जेबें जब दुकान-हाट पर जाती हैं,
तो मोल माल का देख दूर से आहें भर रह जाती हैं,
पर जिनके कड़ियल सीने में है राजों के राजों-सा दिल,
इस आसमान के नीचे ही जुड़ जाती हैं जिनकी महफ़िल...
कवि उनका है,
कविता उनकी!
जिनके सपनों की प्रीत परी बिक जाती है बाज़ारों में,
जिनके अरमानों की कलियाँ सो जाती हैं अंगारों में,
फिर भी जो दिल के घाव छुपा हँसते हैं ज़िंदा रहते हैं...
तूफ़ाँ से काँधे क़दम मिला जो संग समय के बहते हैं...
कवि उनका है,
कविता उनकी!
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