कविता की तासीर (कविता)

पाँव जैसे पड़ जाए साँप पर
चढ़े ऐसी थरथरी
बिच्छु ने मार दिया हो जैसे डंक
या बरैयाँ पीछे पड़ गई हों
कविता भी पीछे पड़ जाए
जैसे पेडू में पथरी की असहनीय पीड़ा
जैसे कान का दर्द झनझनाता हो कनपटी
ऐसी हो उसकी तासीर
फूलों को छुए जैसे ओस
छुअन ऐसी नहीं
बल्कि चाक़ू की तेज़ धार छुए
पके फोड़े को
ताकि रिसना मवाद का शुरू हो
और वाह नहीं
आह निकले होंठों से।


रचनाकार : नरेश सक्सेना
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