प्रथम करूँ खल-वंदना, श्रद्धा से सिर नाय।
मेरी कविता यों जमे, ज्यो कुल्फ़ी जम जाय॥
ज्यो कुल्फ़ी जम जाय, आप जब कविता नापें।
बड़े-बड़े कविराज, मंच पर थर-थर कापें॥
करें झूठ को सत्य, सत्य को झूठ करा दें।
रूठें जिस पर आप, उसी को हूट करा दें॥
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।