ख़ामोशी एक सदा (कविता)

ख़ुशियाँ मोबाईल हो चली,
पीपल तले ख़ामोशियाँ मिली।

बेमतलब की बातें इतनी हुई,
नफ़रतों को इससे हवा मिली।

राजनीति ने अब हुँकार भरी,
दिलों में अब चिंगारियाँ मिली।

उसने ज़माने में मन की कहीं,
बातों में झूठ की बदबू मिली।

मोहब्बत की भूमि हिन्दू बनी,
मन्दिर मस्जिद से तिरगी मिली।

इतिहास की किताबें झूठी रही,
व्हाट्सएप में सच्चाई मिली।

चमन में अब खरपतवार उगी,
मैं भक्त तू चमचा सदाएँ मिली।

महफ़िल में दोस्त मिलते नहीं,
साक़ी को अब फटकार मिली।

ट्रम्प को हवन तो यज्ञ कहीं,
मूर्खों की एक भीड़ मिली।

ताली बजाकर कोरोना से हारा,
उससे नसीहतें हज़ार मिली।

झोपड़ी तेरी अब कोठी बनी,
मुफ़लिस को क्यूँ 'ना' मिली।

सुनों! ठोकरें सारी उधार रही,
कामयाबी की एक राह मिली।

'कर्मवीर' में बुराई एक नहीं,
क्यूँ ज़माने से फिर आह मिली।


लेखन तिथि : 7 नवम्बर, 2019
यह पृष्ठ 204 बार देखा गया है
×

अगली रचना

बदलता दौर


पिछली रचना

बहन-बेटियाँ
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें