साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
1913 - 1985
कोई सागर नहीं है अकेलापन न वन है एक मन है अकेलापन जिसे समझा जा सकता है आर-पार जाया जा सकता है जिसके दिन में सौ बार कोई सागर नहीं है न वन है बल्कि एक मन है हमारा तुम्हारा सबका अकेलापन!
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