कोई सागर नहीं (कविता)

कोई सागर नहीं है अकेलापन
न वन है

एक मन है अकेलापन

जिसे समझा जा सकता है
आर-पार जाया जा सकता है जिसके
दिन में सौ बार

कोई सागर नहीं है
न वन है
बल्कि एक मन है
हमारा तुम्हारा सबका अकेलापन!


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