कृषक का जीवन काँटों से भरा है,
शीत ग्रीष्म बरखा से कब वे डरा है।
विपत्तियों के पहाड़ सर पे उठाएँ,
वह हँसता चेहरा खेतों में खड़ा है।
साहूकारों के ब्याज तले दबकर भी,
उसने अन्न से संसार का पेट भरा है।
तू है भोला न जाने अपनी क़ीमत,
मेरी नज़रों में तो तू सोना खरा है।
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