राधा गुनगुना रही मन में गान,
सुना दो कान्हा मुरली की तान।
जन्माष्टमी का दिन है आज,
बज रहें मुरली, मृदंग और साज।
हँस-हँस कर दिखाता दाँत,
करता बहुत ही मीठी बात।
मक्खन यह चुरा ले जाता,
चेहरा इसका मन मोह लेता।
माथे पर मोरपंख सजाए,
देखो कान्हा मुरली बजाए।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें