साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
1935
आँखें देख रही हैं जो देखने के लिए बनी हैं आज चूल्हा नहीं जला कान सुन रहे हैं जो सुनने के लिए बने हैं बच्चे की फ़ीस नहीं भरी गई कंधे ढो रहे हैं जो ढोने के लिए बने हैं महाजन जल्दी में है
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