कुम्हार के हाथ से (कविता)

यही सही समय है जगत की पुनर्रचना का
मुनादी पिटवाकर इसी दम
सृष्टि की सभी कार्यवाहियाँ स्थगित की जाएँ

ग्रहों को ठहर जाना चाहिए जहाँ का तहाँ

चींटियों अब गह लो पाताल की नींद
ध्वनियों सन्नाटा रचो
अर्थों वापस आओ अपने शब्दों में
पीड़ाओं मुझे अचेत करो

जंगलों, पर्वतों, आसमानों
नए आकार के लिए पिघलो

मनुष्यों अपनी देह से बाहर निकलो

यही सही समय है मनुष्यता की पुनर्रचना का
मुनादी पिटवाकर इसी दम
मनुष्य की सभी कार्यवाहियाँ स्थगित की जाएँ।


रचनाकार : विहाग वैभव
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