क्या माँग भरने का मुझे अधिकार दोगी? (गीत)

उम्र भर ख़िदमत करूँगा सिर्फ़ यह विश्वास दो तुम,
क्या अमर शौभाग्य बनने का मुझे अधिकार दोगी?
कह रही हो तुझपे मेरा पूर्ण है अधिकार प्रियवर,
तो कहो क्या माँग भरने का मुझे अधिकार दोगी?

ख़्वाब सारे, चैन सारा, उम्र भर की नींद सारी,
हमने तुमको सौप दी है ज़िंदगी अपनी ये प्यारी।
सूल सारे चुन के पथ में फूल की रोपी लताएँ,
अब कहो क्या साथ चलने का मुझे अधिकार दोगी?

नम हुए लोचन ये संग में और संग में खिलखिलाए,
साथ में खेले है खाए, और बचपन संग बिताए।
किन्तु क्या यौवन भरे मधुमास की अँगड़ाइयों में,
साथ जीने साथ मरने का मुझे अधिकार दोगी?

कह रही हो तुझपे मेरा पूर्ण है अधिकार प्रियवर,
तो कहो क्या माँग भरने का मुझे अधिकार दोगी?

स्वप्न का आकाश छू मानव नया संसार गढ़ता,
प्रीत की है रीति जग में अंततः अपयश ही ढोता।
उम्र की कलियाँ सभी जब सूख कर पतझार होंगी,
तब कहो क्या साथ रहने का मुझे अधिकार दोगी?

कह रही हो तुझपे मेरा पूर्ण है अधिकार प्रियवर,
तो कहो क्या माँग भरने का मुझे अधिकार दोगी?


रचनाकार : सुशील कुमार
लेखन तिथि : 10 मई, 2022
यह पृष्ठ 222 बार देखा गया है
×

अगली रचना

तन-मन देख प्रतीक्षा हारे


पिछली रचना

नहीं बात करनी मत कीजै
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें