क्या नेह लगाना जीवन में (गीत)

क्या नेह लगाना जीवन में, चौराहे पर मिले पथिक से,
सबको अपनी बस्ती अपने गाँव चले जाना है।

यह अभिनेताओं का गाँव, यहाँ सब प्रीत-प्यार अभिनय है,
मुस्कानें अधरों का छलाव औ' नयन-नीर मृग-जल है।
क्या प्रीत लगाना रंगमंच के पात्र क्षणिक से,
पट परिवर्तन के बाद सभी के वस्त्र बदल जाना है।
क्या नेह लगाना जीवन में...

जग तो जाती है प्यास अधूरी, जब पनघट की दिखे राह,
पर चाहों के नगर न पूरी, हुई आज तक एक चाह,
क्या प्यास जगाना पनघट पे, हैं जिनके तट स्वयं तृषित से,
ऐसे तट हर रीते घट को बस रीता रह जाना है।
क्या नेह लगाना जीवन में...

इस जग में कितने गली गाँव–
पर अपनाया न कभी किसी को बंजारों ने,
बीच भँवर में जाने कितनी फँसी नाँव–
पर दिया किसी को कूल कभी न मँझधारों ने,
क्या आस लगाना नयन सेज पर निठुर रसिक से,
आँसू की सौग़ात छोड़ जिनको सपना रह जाना है।
क्या नेह लगाना जीवन में...

कलियाँ कितनी हैं रंग भरी, पर बाँध न पातीं मधुकर को,
बगिया में जब जब गंध भरी, तब मिला निमंत्रण पतझर को,
क्या रस लुटवाना मधुवन में, मधुरस लोभी श्याम मधुप से,
हर राधा से छल कर कान्हा को, गोकुल छोड़ चले जाना है।
क्या नेह लगाना जीवन में...


लेखन तिथि : 1968
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