मैंने देखा
मैंने पाया
लगे चटोरे दिन।
रबड़ी सी धूप लगती
कलाकंद सी छाँव।
है शहर की सरहद में
उकड़ू बैठा गाँव।।
दुर्घटना की
जब आशंका
तब झकझोरे दिन।
काली-काली लदी हुई
पेड़ों पर जामुन।
बादल गरजे, झरनों को
होता है शाकुन।।
मीठे-मीठे
फल सपनों के
लगा बटोरे दिन।
भोर हुई तो सपना टूटा
दिन ऊगा है।
मेष-धनु-मीन-वृश्चिक
ने पहना मूँगा है।।
हँसी-ख़ुशी का मौसम
डाल रहे हैं
डोरे दिन।