किसी के लौट आने का सुकून 
मकान नहीं दरख़्त है पीले फूलों का 
तुम लौट आई हो तुम्हारी ख़ुशी बनकर हनी 
इमारती इच्छाएँ फ़ुटपाथ पर बिखरी हैं 
सारी चीज़ें क़ायम-मुक़ाम हैं और लावा की नदी 
दस्तक दे रही है सुकून पर किरबानी की गत 
झंकृत करती हुई तुम्हारी ख़ुशी की शिराओं को 
लौट आई हो हनी तुम पीले फूलों की ख़ुशी बनकर 
और तुमने सारे कपड़े उतार कर फेंक दिए हैं चीज़ों से 
हम दोनों के बीच प्यार आख़िरकार बेमानी हो गया है 
लौट आई हो हनी इस तरह 
तुम्हें समेटने को मकान नहीं 
दरख़्त है पीले फूलों का ׃ फ़ुटपाथ पर बिखरी हैं 
इमारती इच्छाएँ।