लौटकर जब आऊँगा (कविता)

माँ,
लौटकर जब आऊँगा
क्या लाऊँगा?
यात्रा के बाद की थकान,
सूटकेस में घर-भर के लिए कपड़े,
मिठाइयाँ, खिलौने,
बड़ी होती बहनों के लिए
अंदाज़ से नई फ़ैशन की चप्पलें?
या रक्त की एक नई सिद्धि
और गढ़ी हुई वीरगाथाएँ?

क्या मैं आकर कहूँगा
मैंने दिन काटे हैं—एक समृद्ध आदमी की तरह
अपने परदे-ढँके कमरे की खिड़की से
मकानों की काई-रची दीवारों पर
निर्विकार आती सुबह देखते हुए?

या क्षुद्रताओं की रक्षा में
निर्जन द्वीप-समूहों मे
समुद्र से अकेले लड़ते हुए?

क्या मैं बताऊँगा
कि मैं आया हूँ
अँधेरी गुफाओं में से
जहाँ भूखी क़तारें
रह-रहकर चिल्लाती हैं
गिद्धों और चीलों की चीत्कारों के बीच
माँ, तुम्हारा प्रिय शोकगीत
‘रघुपति राघव राजाराम...'?

क्या मैं तुमसे कहूँगा
ख़ुश हो माँ, अंत आ गया है
—जिसकी तुम्हें प्रतीक्षा थी
क्योंकि मैंने देखा है
नीले अश्व पर आरूढ़
भव्य अवतारी पुरुष को?

या मैं सिर्फ़ एक क़िस्सा सुना पाऊँगा
नीले घोड़े पर सवार एक पिचके निर्वीर्य चेहरे वाले
आदमी की मौत का
एक छोटे-से गाँव में?

या तुम्हारी तीखी नज़र को बचाते हुए
दूसरे खिलौनों के साथ
अपने छोटे भाई को दूँगा
एक काठ का नीला घुड़सवार?

—क्या मैं लौटूँगा
अपनी निर्जल आँखों में अपमान भरे
जो अब हर रास्ते पर छाया है
आकाश की तरह
और तब,
क्या तब तुम पहली बार पहचानोगी
मेरे चेहरे में छुपा
अपना ही ईश्वरदूषित चेहरा?

माँ,
लौटकर जब आऊँगा
क्या लाऊँगा?


रचनाकार : अशोक वाजपेयी
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