मेरे बचपन की ढेरों स्मृतियों में हैं
ढेर सारी बातें, पुराने दोस्त
नन्ही शैतानियाँ, टीचर की डाँट
और न जाने क्या-क्या
मेरी बचपन की स्मृतियों में है
माँ की लोरी, प्यार भरी झिड़की
पिता का थैला, थैले-से निकलता बहुत कुछ
मेरी बचपन की स्मृतियों में है
पिता का जाना, माँ की तन्हाई
छोटी बहन का मासूम चेहरा
लेकिन न जाने क्यूँ मेरी बचपन की
इन ढेरों स्मृतियों में नहीं दिखता
कभी माँ का जवान चेहरा
उनकी माथे की बिंदिया
उनके भीतर की उदासी और सूनापन
माँ मुझे दिखी है हमेशा वैसी ही
जैसी होती है माँ
सफ़ेद बाल और धुँधली आँखें
बच्चों की चिंता में डूबी
ज़रा सी देर हो जाने पर रास्ता निहारती
मैं कोशिश करती हूँ कल्पना करने की
कि जब पिता के साथ होती होगी माँ
तो कैसे चहकती होगी, कैसे रूठती होगी
जैसे रूठती हूँ मैं आज अपने प्रेमी से
माँ रूठती होगी तो मनाते होंगे पिता उन्हें
कैसे चहक कर ज़िद करती होगी पिता से
किसी बेहद पसंदीदा चीज़ के लिए
जब होती होगी उदास तो
पिता के कंधों पर निढाल माँ कैसी दिखती होगी
याद करती हूँ तो बस याद आती है
हम उदास बच्चों को अपने आँचल में सहेजती माँ
माँ मेरी ज़िंदगी का अहम् हिस्सा है या आदत
नहीं समझ पाती मैं
मैं चाहती हूँ माँ को अपनी आदत हो जाने से पहले
माँ को माँ होने से पहले देखना सिर्फ़ एक बार!
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें