माँ तेरा ख़्याल हैं (कविता)

उदास शाम हैं
न रंग हैं न छाँव हैं,
मैं तन्हा हूँ,
न पास शहर हैं न गाँव हैं॥

मैं रो दूँ वक़्त,
तुझमें न इतना जोर हैं,
हँसा दे जिगरी वो यार
अब न पास हैं॥

तम-ए-शब सजी हैं,
रसोई बेकरार हैं,
हाथ में ज़ख्म हैं
कर्मवीर तू लाचार हैं॥

दूर बैठा हूँ माँ से,
हर दिन बकवास हैं,
तिरे चश्म-ए-दीद का
माँ इन्तिज़ार हैं॥

न चराग़ हैं, न चाँद हैं
बज़्म सुनसान हैं,
आसमान से भी
आज गिरता अंगार हैं॥

सुब्ह तुझसे मुस्करा कर
मिल लूँगा मैं,
एहसास बस ये हो
पास में घर संसार हैं॥

कहकशाँ-ए-अब्र में
माँ तेरी अनवार हैं,
कवि मुस्करा रहा हैं
माँ तेरा ख़्याल हैं॥


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