महाकवि और महान-संत थें आप तुलसीदास,
श्रीराम कथा लिखकर बनें आप सबके ख़ास।
जिनका जप करता है आज विश्व का नर नार,
प्रेम-सुधारस भरा है जिसमें आपनें यह ख़ास।।
बचपन का नाम रामबोला एवं कहतें तुलाराम,
हुलसी इनकी मैया का नाम पिता-आत्माराम।
महाकाव्य ऐसा रचा-रामचरितमानस था नाम,
तन मन से हरिभक्ति करतें रटते रहतें श्रीराम।।
जन्म के वक्त ही थें तुलसीजी के पूरे ३२ दाँत,
अशुभ मानकर छोड़-दिया घर वालों ने साथ।
चुनिया नाम की दासी ने किया पालन-पोषण,
यें तुलसी आगे चलकर हुएँ विश्व में विख्यात।।
१६३१ चैत्र रामनवमी पर लिखना शुरू किया,
मार्गशीर्ष माह में पंचमी तिथि को पूर्ण किया।
२ वर्ष ७ माह २६ दिनों में लिखें है पवित्र-ग्रंथ,
विश्वनाथ मंदिर में शिव पार्वती को यें सुनाया।।
श्री नरहरिदास गुरु इनके रत्नावली धर्म पत्नी,
हिंदी साहित्य के सूरज बनें चमके गली-गली।
संवत् १५५४ में जन्में थें जो राजापुर चित्रकुट,
कई रचनाएँ लिखें कृष्ण गीतावली दोहावली।।

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