महालया (कविता)

पितृ पक्ष को कहते विदा,
देवी पक्ष का करते अभिनंदन।
श्रीराम लंका युद्ध में जाने को तैयार,
कर रहे देवताओं के संग माँ दुर्गा का पूजन।

पा कर श्रीराम की पूजा और अर्चना,
माँ दुर्गा ने दिया धरती पर आने का वचन।
असुरों का नाश करना है, लिया यह प्रण,
ठान लिया करने को महिषासुर का दमन।

आज के दिन कुम्हार करते, दुर्गा को चक्षु दान,
देवी पक्ष का होता प्रारंभ, मूर्ति का हो रहा निर्माण।
मंत्र पढ़कर, आह्वान कर कर, करते माँ का वरण,
गाँव शहर हर जगह होता, महालया का भजन गान।

महालया के मंत्रोच्चार से, आकाश होता गुंजायमान,
देवी देवता फूल बरसाते, धरती होती अभिराम।
जिधर भी देखते, प्रतीत होता, स्वर्ग हुआ प्रतिमान,
रंग लगाते, गुलाल लगाते, बड़ों को करते प्रणाम।

सूर्योदय से पूर्व, प्रातः बेलि में, माँ का होता आवाहन,
चारों और गूंजते मंत्र, शक्ति का करते आह्वान।
विश्व शांति की करते कामना, करते गंगा स्नान,
करते नए वस्त्र धारण, घर में बनते पकवान।

गूँज रही धरती, गूँज रहा अंबर, बजी शंखध्वनि,
आग़ाज़ हुआ प्रलय का, गूँजी विध्वंस की वाणी।
प्रकट हो रही दसों भुजाएँ, हो रहा शक्ति का महानृत्य,
विनाश होगा असुरों का, धुरसित होंगे अपकृत्य।

एक हाथ में त्रिशूल, गले में पहनी मुंडमाला,
धारण किया रौद्र रूप, आँखों में धधकती ज्वाला।
माँ भारती लेगी फिर से साँसें, विनाश का आग़ाज़ होगा,
बजेंगे मृदंग ढोल और नगाड़े, साजो का सरगम होगा।

अब होगा धरती से, भीषण महिषासुर का अवसान,
सूखी धरती पर खिलेंगे, फिर आशाओं के अरमान।
देवी देवताओं को मिलेगी, फिर से खोई पहचान,
नैनों से निकलेगी आग, शक्ति का होगा प्रदर्शन।


लेखन तिथि : 3 अक्टूबर, 2021
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